अभ्युदय
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एक मेहनतकश
मजदूर के लिए,
सुवह की किरण में
एक आशा होती है कि-
शाएद आज काम मिल जाये,
जिसके एवज में,
खुद की एवं बच्चों की
भूख मिट जाये |
एक प्रेयसी के मन में,
गुदगुदी होती है, यह सोच कर कि –
शाएद आज ,
प्रियतम से मिलन हो जाये |
आप्तकाम मन
इंतजार करता है कि –
शाएद निशा में
उसकी संगिनी
अंक में भर जाये |
बेसहारा आँखें,
दिन के उजाले के साथ,
इंतजार करती है कि –
शाएद उनकी खोई हुई बुढ़ापे की
लाठी आज आ जाये |
परन्तु – वे बृद्ध दंपत्ति,
जिनके ऊपर वही तथाकथित ‘ लाठी ‘
कहर बन कर, टूट चुकी है
डरते हैं – दिन के उजाले से
कि, कंही वह पुनः न आ जाए |
सोचते हैं कि –
मौत तो आती नही
साँझ ढले जल्दी,
गम भुलाने के लिए –
शाएद नींद ही आ जाए ………………|
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