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शादीशुदा बनाम बेचारा

अभ्युदय
अभ्युदय
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**** मैंने सुबह प्रतिदिन की तरह अखवार पर नजर डाली , देखा कि समाचार-पत्र ने ” कथा चयन प्रतियोगिता ” का आयोजन किया है | क्यों न मैं भी कुछ लिखूं, यही सोच जैसे-तैसे अपने बौद्धिक स्तर के अनुरूप एक खानी तो लिख डाली , परन्तु आयोजकों की एक शर्त थी कि ‘ हस्त लिखित रचना स्वीकार नही की जाएगी अतः लेखक कृपया टाइप अथवा कम्प्यूटर प्रिंट की हुयी कहानी ही भेजें | ‘ परन्तु इस कस्बे में प्रिंट तो दूर की बात , कोई टाईपिस्ट तक नही उपलब्ध है |सीधी सी बात , कम्प्यूटर प्रिंट निकलवाने शहर जाना पड़ेगा |
‘ परसों इंटरव्यू देने शहर जाना है , कहानी भी लिए जायेंगे , वहीं प्रिंट हो जाएगी |’ मुझे ध्यान आया |
********** टाईपिस्ट की तलाश में मैं प्रत्येक दुकान पर नजर डालता पैदल ही चला जा रहा था | बायीं ओर साइन बोर्ड पर नजर पड़ी, टाईपिस्ट की ही दुकान थी वह | मैं अन्दर पहुंचा | कंप्यूटर चेअर पर बैठा वह व्यक्ति मेरी तरफ घुमा –
‘ क्या बात है ?’
‘ इस कहानी को टाइप करवाना है |’ मैंने पाण्डुलिपि उसकी तरफ बढ़ा दी | उसने कहानी के पन्नो को उलट-पलट कर देखा –
‘ दो सौ अस्सी रूपये पड़ेंगे |’
दो सौ अस्सी ………, रहने दीजिये , बहुत ज्यादा बता रहे हो |’
‘ दो सौ रूपये देंगे ?’
‘ नहीं , भाई साहब |’ मैंने पाण्डुलिपि लीऔर बाहर आ गया | सोंचा ‘शी’ कितने दिनों से कह रही है की ‘री’ [ बच्ची ] के लिए एक गर्म सूट ला दो | बीस रूपये में टाइपराइटर से कहानी टाइप हो जाएगी और बाकी पैसों में कुछ और मिलाकर ‘री’ के लिए सूट खरीद लूँगा |
मैं तेज क़दमों से चला जा रहा था,घर से निकलते समय ‘शी’ ने हिदायत दी थी –’ शाम को पांच बजे तक हर हाल में घर वापस आ जाना |’ कुछ आगे चलने पर एक अन्य ‘ कंप्यूटर जॉब सेंटर’ पर नजर पड़ी, सोंचा यहाँ भी देख लूँ | अन्दर पहुंचा तो कंप्यूटर स्क्रीन से नजर हटाकर, मेरी ओर देखकर उस आपरेटर ने पूंछा –
‘ कहिये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ?’
‘ इस कहानी का प्रिंट निकलवाना है |’
उस लड़के [आपरेटर ] ने हस्तलिखित कहानी को देखा – ‘ दस पेज तो हो ही जायेंगे, एक सौ बीस रूपये पड़ेंगे |’
न जाने क्या सोंचकर मैंने कह दिया -’ एक सौ रूपये लेंगे ?’
वह कुछ सोंचकर बोला – ‘ ठीक है, एक बजे आकर ले लेना |’
‘ कुछ एडवांस ………?’
‘ सुबह का टाइम है, बोहनी नहीं हुयी है, कुछ दे देते तो अच्छा रहता |’
मैंने पचास रूपये उसे दे दिए और अपने साक्षात्कार – स्थल की ओर चल दिया |
************** मैं सोंच रहा था की कुँआरा व्यक्ति बड़े सुकून में रहता है- जब चाहो, जहाँ चाहो आराम से घुमो-फिरो ‘ परन्तु एक शादीशुदा व्यक्ति के लिए झंझट ही झंझट है | सुबह मेंडिटेशन में बैठो तो ‘री’ सिर पर खड़ी होकर चिल्लाएगी – ‘ पापा, मम्मी ने डाटा है |’ ‘शी’ का तेज स्वर कानों में पड़ेगा –’चीनी ख़त्म हो गयी है, अभी लानी है, लाओगे तभी चाय बन पायेगी |’
बस हो गया ‘मेंडिटेशन’ झल्लाकर उठा जनरल स्टोर पर पहुंचा, दुकानदार पूंछता है –
‘ भाई साहब क्या पूजा अधूरी छोड़कर चले आये ? [ वह मेरी दिनचर्या से परिचित है ] झल्लाहट होती है उसके प्रश्न पर , बस इतना ही कह पाता–’ मैं शादीशुदा हूँ , समझे !’
************* दो बज रहा है, इंटरव्यू समाप्त होते ही मैं कंप्यूटर जॉब सेंटर पर पहुंचा | आपरेटर से प्रिंट माँगा , जबाब मिला-’ बस एक घंटा और इंतजार कर लीजिये |’
मैंने आश्चर्य व्यक्त किया – ‘ एक बजे का समय दिया था, और दो बज रहा है अभी तक आपने टाइप नही कर पाया |’
‘ भाई साहब ! आपने लिखा ही इतना छोटा-छोटा था कि समय ज्यादा लग रहा है |’ उल्टा चोर कोतवाल को डांटे- मुहाबरा याद आ गया | मरता क्या न करता, आधा पैसा एडवांस जो दे चूका था |
‘ ठीक है, मैं एक घंटा और इंतजार कर लेता हूँ, तीन बजे तक काम हो जाना चाहिए क्योंकि मुझे यहाँ से लगभग एक सौ किलोमीटर दूर जाना है |’
‘ दरअसल यहाँ काम ज्यादा हो गया था, इसलिए कहानी को मैं दुसरे सेंटर पर दे आया | पर आप चिंता न करें, वह भी अपना ही सेंटर है | एक घंटे में काम हो जायेगा, तब तक आप अन्दर आ जाईये , इस एल्बम को देखिये |’ उसने एक कंप्यूटर की तरफ इशारा करते हुए कहा |
********** दुसरे कंप्यूटर पर किसी एल्बम की सी.डी. चल रही थी – मैं अन्दर आ गया – ‘ साला मक्खनबाजी करता है |’ मैं बुदबुदाया और दुकान का निरीक्षण करने लगा | यह सेंटर एक हालनुमा दुकान में स्थित था जिसमें प्लाईवुड से पार्टीशन कर अलग-अलग चैंबर बना दिए गये थे |
*********** तीन बज गये , मैं अपनी जगह से उठा और उस चैंबर में घुस गया जहाँ वह लड़का [ आपरेटर ] कंप्यूटर पर कुछ कार्य कर रहा था | घडी की ओर देखते हुए मैंने कहा – ‘ एक घंटा हो चूका है |’
वह चुपचाप उठा, साइकिल उठाई और संभवतः उसी सेंटर पर चला गया जहाँ कहानी टाइप हो रही थी |
************* दुसरे चैंबर का दरवाजा खुला, एक लडकी बहार आई , मैंने पूंछा –
‘ कहाँ पर है आपका दूसरा कंप्यूटर सेंटर ?’
‘ मेरा कोई भी दूसरा सेंटर नही है |’ उसने बेबाकी से उत्तर दिया, मै हैरान-परेशान |
सवा तीन बज रहा है, मैं सोच रहा था – इस कहानी के चक्कर में इतना लेट हो गया | रास्ते में भी चार घंटे से कम समय नही लगेगा | मुझे ‘शी’ की पांच बजे तक लौट आने की चेतावनी याद आ गयी | सोंचा फोन करके बता दें कि – ‘ कुछ लेट हो जाऊँगा | ‘
********** हैलो ! हाँ पापा मैं अमि…. शहर से अभी एक घंटे बाद चलूँगा, संभवतः आठ बजे वाली ट्रेन से वहां पहुंचूगा |’
शुक्र है पापा ने फोन उठाया , वर्ना अभी ‘शी’ का लम्बा-चौड़ा व्याख्यान सुनना पड़ता |
************ मैं पुनः उसी सेंटर पर आ गया | वह लड़का अभी वापस नहीं आया था |
चैंबर से वाही लडकी बाहर निकली, ब्लैंक विजिटिंग कार्ड से एक कार्ड निकाल कर मेरी ओर देखा और उसे चूम लिया फिर मेरे बाएं तरफ से इस तरह मुस्कराते हुए निकली जैसे हवा में चल रही हो |
‘ सत्यानाश हो तेरा, बेशरम कहीं की, मुझ पर लाईन …………| ‘शी’ को पता चल गया तो मेरे साथ तेरी भी ऐसी की तैसी कर देगी |’
‘ आपने कुछ कहा ?’ उसने पूंछा |
‘ जी, कुछ नहीं |’ मै हडबडा गया |
**************** टाइप किये हुए चार पेज लेकर विजयी मुद्रा में वह लड़का आ गया –
‘ इसमें करेक्शन कर लीजिये, पूरी कहानी टाइप हो चुकी है बस प्रूफ रीडिंग बाकी है | पांच मिनट में काम हो जायेगा |’
मैं करेक्शन करने लगा — कहानी में एक नाम जो ‘ जानकीदास गुप्ता ‘ था उसे
‘ जानकारीदास गुप्ता ‘ और एक विशेषण ‘ स्वर सम्राज्ञी ‘ को ‘ स्वर सामग्री ‘ टाइप कर दिया था | इसे ठीक करके लडके को थमा दिया | करेक्शन किये प्रूफ को लेकर वह निकल रहा था कि एक अन्य सज्जन का आगमन हुआ –
‘ शादी के कार्ड तैयार हो गये ?’ सज्जन ने पूंछा |
‘ अभी नहीं सर !’ बेचारगी से उस लडके ने जबाब दिया |
‘ क्यों ?’
‘ दरअसल आपने कार्ड पर जो लोगो दिया था, उसे सेट करने में बड़ी दिक्कत हुयी -इसीलिए लेट हो गया |”
‘ शादी को चार दिन बचे हैं , कार्ड क्या शादी के बाद वितरित करेंगे ?’ वह झल्ला उठा |
*********** एक अन्य चैंबर से एक तेज-तर्रार ,हिप्पीकट बालों वाली महिला [ शायद सेंटर कि प्रोप्राइटर ] निकली और उस लड़के को झिड़कने लगी – ‘ इस तरह से काम करोगे तो सारी दुकानदारी ही चौपट हो जाएगी |’ मेरी तरफ देखकर पुनः उन सज्जन से मुखातिब हुयी -’ यह भाई साहब दो घंटे से बैठे हैं , अभी काम करके नही दे पाया |’
लड़के ने मेरी कहानी के करेक्शन किये हुए चार पेज उठाये और चलते बना |
********** एक घंटा और बीत गया, दिल में घबराहट सी होने लगी | मुझे उसकी कार्यशैली पर गुस्सा आने लगा सोंचा एक साथ इतना काम ही क्यों ले लेता है जो समय से पूरा करके नही दे पाता | इसमें अपना ही तो नुकसान कर रहा है यह |
अब तो ट्रेन भी नही मिलेगी, कुंआरा होता तो लेट – लतीफ़ भी घर पहुंचता तो कोई बात नही थी, लेकिन मैं तो शादीशुदा हूँ | जब तक घर नही पहुंचता ‘शी’ इंतजार करेगी, शायद खाना भी नही खाएगी |
इस ‘शी’ ने तो परेशान कर रखा है, हर काम की टाइमिंग ; इंजन के पुर्जे की तरह |
मैं सोंच रहा था कि ‘ क्या शादीशुदा आदमी इंजन है , जो दुसरे कि इच्छा के अनुसार चलता-बंद होता है | ‘
**************** पांच बज गया, अब मुझे वहां बैठे-बैठे बेचैनी होने लगी थी | मै उठा और जिस दिशा में लड़का गया था , उसी दिशा में एक-एक दुकान देखते हुए चल पड़ा |
मिल गया वह- एक दुकान में में बैठा हाँथ हिलाकर मुझे बुला रहा था | मैंने दुकान में प्रवेश किया — दो कंप्यूटर और दोनों पर मेरी कहानी ही टाइप हो रही थी | अभी बहुत काम बाकी था, मैंने उस लडके को घूरा, वह सकपकाया और बिना कुछ कहे बाहर निकल गया |
मैंने सोंचा दो-तीन पेज रह गये हैं तो अब इन्हें टाइप करवा ही लें | मैं स्क्रीन पर ही पढ़कर उसमें करेक्शन करने लगा | टाइपिस्ट बोला – ‘ भाई साहब इतनी जल्दी क्या है? अभी प्रूफ निकाल देंगे , आराम से करेक्शन कर लीजियेगा |’
‘ अभी मुझे यहाँ से सौ किलोमीटर दूर जाना है , और सबसे बड़ी बात -मैं शादीशुदा हूँ |’ मैंने अपनी वस्तु स्थिति स्पष्ट कि |
************* लगभग सात बजे कहानी टाइप हो पाई | उसे लेकर मैंने रिक्शा किया और बस स्टेशन पहुंचा | बस मिल गयी — कुछ सुकून हुआ | अँधेरा हो गया था , गाड़ियों की हेडलाइटें जल चुकी थीं परन्तु चालक ने बस के अन्दर की लाइट बंद कर थी, फलतः बस के अन्दर अँधेरा छा गया | मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं , वैसे भी अँधेरे में आँखें खोले रहने से कोई फायदा नही |
बस रत के अँधेरे को चीरते हुए चली जा रही थी, एकाएक पिछले पहिये से कुछ आवाज आने लगी | चालक ने निरीक्षण के लिए बस रोकी, नीचे उतर कर देखा कि पिछले टायर से हवा निकल रही थी पता चला कि बस में स्टेपनी भी नही है | शुक्र था कि बस एक कस्बे के नजदीक पहुंच चुकी थी, जहाँ से कुछ ही दुरी पर पंक्चर की दुकान थी | दुकानदार बुलवाया गया, उसने देखा , फिर बताया पंक्चर हो गया है , पहिया खोलना पड़ेगा |’
मेरे होश फाख्ता, पहले ही पांच घंटा लेट हो चुका हूँ, अभी एक बस और बदलनी पड़ेगी तब कहीं घर पहुंचूगा | अब यह भी एक आफत – कम से कम एक घंटा तो और गया |
कुछ यात्री नीचे उतरे, एक बोला-’ अभी दूसरी बस आ रही होगी उस में बैठ लेंगे |’
‘ इतनी रात गये ” नान स्टापेज जगह पर भला कोई बस क्यों रोकेगा ?’
‘ रोकेगा कैसे नही , हम लोग गाड़ी के आगे खड़े हो जायेंगे |’
मैंने सोंचा -लगता है यह लोग अभी अविवाहित हैं अथवा इन्होने अपना बीमा करवा रखा है |
मनु ने कितनी बार मुझसे कहा -’ बीमा करवा लो |’ परन्तु मेरे पास इतने पैसे ही नही हो पाते की बीमा करवाता |
‘ अरे, नही….नहीं, मै शादीशुदा हूँ, मैंने बीमा भी नही करवा रखा है, मैं बस रुकवाने के लिए आगे नही खड़ा हो सकता | कहीं बस मेरे ऊपर चढ़ गयी तब ‘री’ और ‘शी’ का क्या होगा ……..नेवर…. मैं ऐसा नही कर सकता |’
मैंने महसूस किया कि शादीशुदा व्यक्ति कितना कायर हो जाता है |
रोड पर दूर से हेडलाइट चमकी, एक युवक बीच सड़क पर खड़ा हो गया | पास आने पर पता चला वह एक ट्रक था | साथी ने उसके एक धौल जमाई कमबख्त ट्रक और बस में अंतर नही समझता |’ अगले प्रयास में बस रुकी– मैं शादीशुदा हूँ , जल्दी घर पहुंचना है अतः जल्दी से बस चढ़ गया | पहले से भरी बस में सबसे पीछे की सीट नसीब हुयी | उबड़-खाबड़ रास्ते पर चल रही कबाड़ हो चुकी परिवहन निगम की उस बस की पिछली सीट पर फुटवाल की तरह उछलता हुआ , मुफ्त का धुल रूपी पाउडर लगाते हुए एक बार पुनः सफर शुरू हुआ |
कुछ सवारियां इस पर भी संतुष्ट हैं, संतोष तो मुझे भी है परन्तु मुझे डर है तो इस बात का कि कपड़ों की धुलाई के समय साथ में मेरी भी खबर ली जाएगी |
********* आखिर वह बस स्टैंड आ गया, जहाँ से मुझे दूसरी बस पकड़नी है | नीचे उतरा सोंचा फोन करके यह बता दें कि ट्रेन छुट गयी थी अतः हम बस से ही आ रहे हैं |
‘शी’ ने ही फोन रिसीव किया –’ अरे आप ट्रेन से क्यों नही आये? जानते हो पापा रेलवे स्टेशन तक जाकर ढूंढ़ आये |’
मुझे लगा पापा अब भी मुझे दूध पीता बच्चा समझते हैं | खैर, ‘शी’ से मैंने पूंछा -’ खाना खा लिया ?’
‘ अभी नही आप आ जाओ तब खा लुंगी |’
‘लेकिन नौ बज रहा है, तुम खाना खा लो , मैं दस-ग्यारह बजे के बीच वहां पहुंच पाऊंगा |’
‘ नही आप जी भर के टहल लो, मै खाना नही खाऊँगी |’
मैंने गुस्से में रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया | p .c .o . वाले ने पूंछा –
‘ क्या बात है भाई साहब ?’
‘ तुम शादीशुदा तो नही हो ?’ मैंने उल्टा उस से प्रश्न किया |
‘ नहीं |’ वह मासूमियत से बोला |
‘ लेकिन मैं शादीशुदा हूँ |’ मैंने उस से चिल्लाकर कहा |
सामने दिल्ली डिपो कि बस खडी थी, ‘ क्यों भाई साहब, क्या जे.बी.गंज में इसका स्टापेज है?’
‘नही’ लेकिन हम आपको वहां उतार देंगे, किराया भी वहीँ तक का लेंगे | आईये बैठ जाईये ……, पैसे दे दीजिये लेकिन टिकट नही काटूँगा मैं….|’ परिचालक ने बेशर्मी से कहा |
मैंने मन ही मन सोंचा – ‘ टिकट न काटकर सरकार का पैसा खुद हजम कर रहा है यह |’ परन्तु क्या करता ; मैं बस में बैठ गया |
********** बस चल पड़ी मैंने घडी देखी सवा नौ बज रहा है, न जाने क्यों बार-बार मेरी नजर घडी पर जा रही है | दस बज गया — चलो पहुंच ही गये अभी एक किलोमीटर होगा यहाँ से दो-तीन मिनट में घर पहुंच जाऊंगा | परन्तु यह क्या पास के ढाबे पर बस रुकी…..| चालक/परिचालक समेत अधिकांश यात्री ढाबे में घुस गये | अब तो खाना-पीना करके ही चलेंगे यह लोग …..मतलब कम से कम एक घंटे का रेस्ट…|
रात के दस बजे , सर्द मौसम में , घर से मात्र एक किलोमीटर दूर एक घंटे तक बस कि प्रतीक्षा करना एक शादीशुदा व्यक्ति के लिए बेबकूफी है |
मैं घर के लिए वहां से पैदल ही चल दिया | सोंच रहा था , पंद्रह मिनट में घर पहुँच जाऊंगा फिर अभी ..’शी’ का भाषण सुनना है, खाना; खाना है, सोना है और सुवह पांच बजे उठ जाना है , रोजी-रोटी के जुगाड़ में ; क्योंकि मैं एक शादीशुदा बाल-बच्चेदार व्यक्ति हूँ………|

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