अभ्युदय
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आओ मिलकर दीप जलाएं,
अंधकार को दूर भगाएं |
जब तक फैला है बाहर गम ,
नहीं भगेगा अंतस का तम |
स्वार्थ से हम बाहर निकलें ,
देखें उन बच्चों की शक्लें |
जिनकी किस्मत अंधकारमय,
कोई न जिनके जीवन में लय |
लाचारी बनी ताज है सिर का ,
वह भी दीपक हैं किसी घर का|
जिनके सिर पर कोई न छत है ,
एक निवेदन उनके प्रति है …….|
घी का एक दिया कम कर देंगे,
तो भी अँधेरा ना भटकेगा |
वही दिया “उनके” घर आँगन,
टिमटिम जुगनू सा चमकेगा |
जब उनका घर रहे न खाली,
तभी मनेगी सही दिवाली ||
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